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जाड़े की रात पर निबंध - Essay on Winter's Night in Hindi

जाड़े की रात पर निबंध हिंदी में : आज मैं आपको Jade ki raat par nibandh बताऊंगा। अगर आपको यह लेख पसंद आये तो अपने मित्रों के साथ जरूर शेयर करें.

जाड़े की रात पर निबंध (Jade Ki Raat) - Essay on Winter's Night in Hindi


जाड़े की रात पर निबंध



जाड़े की रात


जाड़ा' शब्द संस्कृत के 'जाड्य' शब्द से बना है जिसका अर्थ ठंढक या शीतलता होता है। 'जाड़ा' शब्द का प्रयोग सामान्यतः मौसम-विशेष के लिए किया जाता है। भारत में वैसे ऋतुएँ तो छह हैं, जिनका समय दो-दो माह होता है।

लेकिन मौसम मुख्यत: तीन हैं- गर्मी, वर्षा और जाड़ा। यों भारत को गरम देश माना जाता है, जबकि यहाँ छ: महीने गर्मी और चार महीने जाड़ा पड़ता है। ये दोनों चरम पर ही होते हैं। - जाड़े की रात 

जाड़े का मौसम अपने में तीन ऋतुओं को समेट लेता है- शरद्, हेमंत और शिशिर। कुछ लोग कहते हैं कि जाड़े में लोग अधिक काम करते हैं। लेकिन यह भी सत्य है कि जाड़े की रात लोगों को जड़ बना देती है। संस्कृत 'जाड्य' का एक अर्थ 'जड़ता' या 'निष्क्रियता' भी होता है, जो इस मौसम के लिए सार्थक प्रतीत होता है। 

जाड़े की रात में जिधर देखिए, उधर सुनसान। संध्या सात-आठ बजते ही बाजार श्मसान-सा नजर आता है।
गाँवों में दूर-दूर कहीं-कहीं कोई प्रकाश दिखायी पड़ता है। ठंढ से कॉपते हुए सियार और कुत्ते की आवाज भी ठिठुर जाती है। - Jade Ki Raat Par Nibandh

अतः जाड़े की रात सचमुच अपना नाम सार्थक करती है। किन्तु ढाढ़स इसी से बँधती है कि कभी-न-कभी यह कालरात्रि अवश्य टलेगी और सुनहली सुबह आएगी। मीठी-मीठी धूप सोना लुटाएगी, बेचारे गरीब इसे लूट कर निहाल होंगे, चहकेंगे, गायेंगे और दुख-दर्द भूल जाएँगे।

जाड़े की सुबह भले ही किसी कवि को फूले हुए कास के श्वेत वसन धारण किए, मस्त हंसों की मीठी बोली के सुहावने बिछुए पहने, पके हुए धान के मनोहर शरीर वाली तथा कमल के अनुपम मुखवाली दुल्हन-सी लगती हो, किन्तु जाड़े की रात किसी शैतान की आकृति की तरह अत्यन्त भयावह लगती है। 

वह गरीबों को सताती है, काटे नहीं कटती। सूरज का गोला
भी जल्दी निकलता नहीं। कनक-कुबेरों, सामंतों और सरदारों के पास इतने सामान रहते हैं कि शिशिर का शीत उनका कुछ नहीं कर पाता।

किन्तु साधारण गरीब लोग, जिन्हें भरपेट भोजन भी नसीब नहीं, तन ढँकने को गरम कपड़े की बात कौन कहे, साधारण कपड़ा भी नहीं है, तीर की तरह भेदती ठंढ़क से उनकी हालत बड़ी दर्दनाक हो जाती है।

जाड़े की रात मानों सम्पन्नता के स्वर्ग और विपन्नता के नरक के दृश्यों को दिखाने वाली यंत्र-नलिका हो। हमारे देश में एक ओर अमीरी का इन्द्र-वैभव है तो दूसरी ओर गरीबी का शैशव-इसे दिखाने वाली जाड़े की रात है।

किसी के लिए जाड़े की रात मधु-यामिनी है। वातानुकूलित कक्षों में मखमल की गद्दी पर जिन्हें दरिद्रता का सर्पदंश नहीं लगता, जिन्हें अभाव की सूईयों की चुभन नहीं सहनी पड़ती, उनके लिए तो जाड़े की रात ईश्वर का सबसे बड़ा वरदान है। 

किन्तु जिन्हें न तन ढकने का कपड़ा है, न पेट भरने को अन्न, फुटपारथों का आकाश ही जिनके आवास की छत है, ऐसे अभागों के लिए जाड़े की रात प्रकृति के सबसे बड़े अभिशाप के रूप में आती है। यह सुरसा की जमुहाई से भी लम्बी, कुम्भकर्ण की नींद से भी गहरी ठहरती है।

समाप्त

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