एक बहुत पुरानी सूक्ति है :
If wealth is lost, nothing is lost,
If health is lost, something is lost,
Ifcharacter is lost, everything is lost.
यदि आपकी धन-संपत्ति का क्षय हो जाता है, तो एक प्रकार से आपका कुछ नहीं खोया है, यदि आपका स्वास्थ्य नष्ट हो गया है, तो आपकी थोड़ी-सी हानि हुई है और यदि आपका आचरण आपका साथ छोड़ जाता है, तो आपका सर्वस्व चला जाता है ।
आचरण वस्तुतः समस्त व्यक्ति को, व्यक्ति के समग्र शील-स्वभाव को समाहित करता है। चरित्र के अंतर्गत व्यक्ति के मन, वचन एवं वाणी से संबंधित समस्त प्रक्रिया एवं कार्य-कलाप आ जाते हैं। इतना ही नहीं, व्यक्ति का चेतना-विकास भी उसके चरित्र का अंग बनता है, क्योंकि चेतना-विकास के अनुरूप व्यक्ति की इच्छाशक्ति का स्वरूप निर्धारित होता है। इच्छाशक्ति वासना का पारमार्थिक रूप है ।
इच्छा अथवा वासना विचार उत्पन्न करती है। विचार वासना को कार्यान्वित करने की योजना निर्धारित करता है और हमारी कार्यशक्ति उस योजना को कार्यान्वित करती है। इच्छा, ज्ञान, क्रिया अथवा वासना; विचार एवं क्रिया-कलाप का चक्र अबाध गति से चलता रहता है, क्योंकि ये तीनों अन्योन्याश्रित हैं।
इस समस्त प्रक्रिया के नवनीत रूप से चरित्र नामक तत्त्व का निर्माण होता है, जो हमारे व्यक्तित्व का स्वरूप बनता है । आत्मतत्त्व होने के कारण चरित्र हमारी स्थायी संपत्ति है । अत: चरित्र को उज्ज्वल और पवित्र रखना चाहिए । वह मानव की अस्मिता भी है और उसका प्राप्तव्य भी ।
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